एमपी बोर्ड कक्षा 12 हिंदी महत्वपूर्ण पद्यांश तथा उनकी व्याख्या कैसे करें
MP Board class 12 Hindi important padyansh 2022
मीरा के पद
भज मन चरण कवल अविनाशी।
जेताई दीसे धरणी गगन बिच, तेताई सब उठि जासी।।
कहा भयो तीरथ व्रत की ने, कहां लिए करवट काशी ।
इस देही का गरब न करना, माटी में मिल जासी।।
यो संसार चहर की बाजी, सांझ पड़ियो उठ जासी।।
कहा भयो है भगवा पहरिया, घर तज भए सन्यासी।।
जोगी होया जुगत नहीं जानी, उलट जन्म फिर आशी।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर, काटो जन्म की फांसी।।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश मीरा के पद नामक पाठ से लिया गया है जिसकी कवयित्री मीराबाई है।
प्रसंग- मीराबाई ने भक्ति मार्ग में प्रचलित ढकोसला का खंडन किया है।
व्याख्या- मीराबाई कहती है कि हे मन! तुम अनश्वर प्रभु के चरण कमलों में अपने को समर्पित कर दो। धरती और आकाश के मध्य जो कुछ भी भौतिक वस्तुओं दिखाई दे रही है सभी नष्ट होने वाली है। केवल प्रभु ही अनश्वर है वह कभी नष्ट होने वाले नहीं है इसलिए तू उन्हीं की शरण ले ले। मोक्ष प्राप्ति के लिए किए जाने वाले तीर्थ व्रत या काशी में जाकर निवास करने से कुछ भी होने वाला नहीं है। इस शरीर का गर्व मनुष्य को नहीं करना चाहिए। शरीर नश्वर है। 1 दिन से मृत्यु प्राप्ति के बाद मिट्टी में मिलना है। यह संसार चहर की बाजी के समान सीमित समेत का एक खेल है। संध्या काल होते ही बाजी समाप्त हो जाएगी। भगवा वस्त्र धारण करने से या सन्यास धारण करने से तुम्हें मुक्ति नहीं मिलने वाली है। योगी पुरुष होकर भी तुमने मुक्ति के मार्ग की खोज नहीं की, इसलिए तुम्हें बार-बार विभिन्न रूपों एवं योनियों में जन्म लेना पड़ रहा है। मीराबाई के प्रभु श्री कृष्ण है जोके जन्म मरण के चक्कर से मुक्ति दिलाते हैं। तुम भी उन्हीं की शरण में आकर उनकी सेवा करो, तभी तुम इस माया मोह के जाल से बच सकते हो।
विशेष- 1. रूपक उपमा एवं अनुप्रास अलंकार है।
2. पद में संगीतात्मकाता एवं लयबद्ध ता है।
3. संतमत का प्रभाव स्पष्ट है।
4. पद शैली दर्शनीय है।
2. सखी री लाज बैरन भई।
श्री लाल गोपाल के संग, काहे नाहि गई।।
कठिन, क्रूर, अक्रूर आयो, साजि रथ कह नई।
रथ चढ़ाए गोपाल लेगो,हाथ मीजत रही।।
कठिन छाती स्याम बिछुरत, विरह में तन तई।
दासी मीरा लाल गिरधर, बिखर क्यों न गई।।
संदर्भ- प्रस्तुत पद्यांश मीरा के पद नामक पाठ से लिया गया है जिसकी रचयिता मीराबाई है।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में मीराबाई ने “लाज” को श्री कृष्ण के मार्ग में बंधन माना है।
व्याख्या- मीराबाई कहती है कि सखी श्रीकृष्ण को प्राप्त करने में लाज शत्रु बन गई है। यह लाज श्री कृष्ण के जाते समय उनके साथ क्यों नहीं चली गई।वह अक्रूर आए एवं मेरे प्यारे प्रियतम श्रीकृष्ण को सजाकर रथ पर सवार करके ले गए और मैं हाथ मलते रह गई अर्थात उनके जाने पर कुछ नहीं कर पाई। मेरी पीड़ा उस समय अधिक बढ़ गई जब मेरे प्रियतम श्री कृष्ण मुझसे बिछड़े तब मेरे प्राण क्यों नहीं निकले।मीराबाई कहती है कि उस समय मेरे प्राण शरीर से क्यों नहीं निकल गए।
काव्य सौंदर्य- 1. प्रस्तुत पद में ब्रज भाषा का प्रयोग है
2. पद गेय है।
3. वियोग श्रृंगार रस का वर्णन किया है।
4. बिरह का मार्मिक एवं अनूठा वर्णन है।
Leave a Reply