भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन
कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो
25 साल की छोटी सी उम्र में गणित की विभिन्न खोज व खुद की मेहनत एवं लगन से काम किया। उनका पूरा जीवन गरीबी से जूझता रहा। उनके पूरे जीवन में स्वास्थ्य ने भी साथ नहीं दिया और इन सब के रहते हुए भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी। और लगातार गणित के प्रति मेहनत करते रहे 32 साल की छोटी सी उम्र में गणित में अनेकों खोज की। इस महान गणितज्ञ के सम्मान में पूरा देश उनका जन्मदिन राष्ट्रीय गणित दिवस के रुप में मनाता है।
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय हिन्दी में-
श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को भारत के तमिलनाडु राज्य में इरोड नामक एक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री निवास अयंगर था। जो एक साड़ी की दुकान पर क्लर्क का काम किया करते थे। उनकी माता का नाम कोमल तामल था। जो एक पास ही मंदिर में भजन गाया करती थी। रामानुजन का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ था। इनका बचपन कुंभकोणम में ही बीता। कहा जाता है कि बचपन में रामानुजन का बौद्धिक विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा बहुत ही कम था। 3 साल तक रामानुजन में कुछ भी नहीं बोला।
इस वजह से घरवालों को चिंता सताने लगी कि कहीं उनका लड़का गूंगा तो नहीं है। रामानुजन को बचपन से ही पढ़ाई लिखाई का शौक था। लेकिन वह कहा जाता है कहां जाए तो गणित के विषय में उनकी विशेष रूचि थी। इन्होंने 10 वर्ष की उम्र में प्राइमरी की परीक्षा पास की एवं पूरे जिले में सर्वश्रेष्ठ अंकों के साथ पास हुए। वह हमेशा अलग अलग प्रश्नों के बारे में सोचा करते थे कि धरती और आसमान की दूरी कितनी है। संसार का पहला पुरुष कौन सा था। इनके प्रश्नों को सुनकर स्कूल की उनकी टीचर भी उससे परेशान रहते थे।

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परंतु रामानुजन बहुत ही सरल स्वभाव के थे। सभी से बहुत ही मित्रवत व्यवहार किया करते थे। रामानुजन अपनी कक्षा के अलावा आगे कक्षा के गणित विषय के प्रश्नों को आसानी से हल कर लिया करते थे। उनकी योग्यता एवं चमत्कार से स्कूल के सभी अध्यापक अचंभित रहते थे। रामानुजन के घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। जुलाई 1909 में उनकी शादी जानकी नाम की लड़की से कर दी गई। शादी के बाद उनकी पत्नी ने उनका पूरा साथ दिया। शादी के बाद उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो गई। इसके बावजूद लगातार संघर्ष किया।
उन्होंने अपने जीवन में गरीबी को बहुत ही नजदीक से देखा था। इतनी गरीबी होने के बावजूद उन्होंने अपनी मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी। शादी के बाद उनकी तबीयत भी खराब रहने लगी। उन्होंने ऐसी स्थिति में उन्होंने नौकरी करने की भरपूर कोशिश की लेकिन कुछ समय के बाद उन्हें इसमें सफलता मिल गई, 26 अप्रैल 1920 में 32 साल की उम्र में श्रीनिवास रामानुजन जी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
श्रीनिवास रामानुजन की गणित के प्रति दीवानगी-
मुख्य रूप से कहा जाए तो रामानुजन गणित की प्रति दीवाने थे। उन्हें गणित विषय के अलावा अन्य विषयों में रुचि नहीं थी। एक बार तो ऐसा हुआ कि कक्षा 11 में गणित विषय के अलावा अन्य दूसरी विषयों में फेल हो गए थे। छोटी सी उम्र में गणित की बड़ी से बड़ी सवाल आसानी से लगा लेते थे। उनकी इसी लगन एवं मेहनत के कारण आज उन्हें में विश्व में गणित का भगवान माना जाता है। वे ऐसे महापुरुष थे उन्होंने गणित में संसार को बदल दिया। उन्होंने अपने पूरे जीवन को केवल न केवल गणित के लिए सौंप दिया।
बल्कि उन्होंने अपनी छोटी से छोटी जिंदगी में अनेकों ऊंचाईयां हासिल की। रामानुजन ने 13 साल की उम्र में लंदन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एस एल लोनी की विश्व प्रसिद्ध त्रिकोणमिति पर लिखी पुस्तक का गहनता पूर्वक अध्ययन किया। जो लोग अपने लंबे जीवन में ज्यादा कुछ नहीं कर पाते रामानुजन ने पूरे विश्व में गणित के द्वारा रोशनी पैदा कर दी। रामानुजन इतनी गरीबी से गुजर रहे थे कि सवाल लगाने के लिए उनके पास इतने सारे कागज भी नहीं हो पाते थे। अधिकांश स्लेट पर ही अपने सवालों को हल करना पड़ता था।
भारत की गणितज्ञ नीना गुप्ता को मिला रामानुजन पुरस्कार
नीना गुप्ता कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान में प्रोफ़ेसर पद पर हैं। यह सम्मान पाने वाली नीना गुप्ता दुनिया की तीसरी महिला बन गई हैं। नीना गुप्ता ने अनेकों सम्मान प्राप्त किए इसके पहले नीना गुप्ता को में 2019 में 35 साल की उम्र में ही शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। और यह पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला हो गई थी।
नीना गुप्ता का नाम इतिहास के पन्नों में अंकित हो चुका है। रामानुजन पुरस्कार भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की याद में दिया जाता है। खास बात यह भी है कि इस पुरस्कार को पाने के लिए 45 साल से कम उम्र होना अति आवश्यक है। इस पुरस्कार को पाने के बाद गुप्ता का कहना है कि दुनिया की हर चीज में गणित है जो भी कार्य करते हैं उसमें भी गणित अपना कार्य करता है। बस इसको समझने की जरूरत है। इससे डरने की जरूरत नहीं है। लगन एवं मेहनत से काम करें। तो मंजिल आपको एक दिन जरूर मिलेगी। साथ ही नीना गुप्ता को मिले इस पुरस्कार पर भारत के हर नागरिक को उन पर गर्व है।
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