जबलपुर : वर्तमान समय में प्रदेश में रासायनिक खादों का अधिकाधिक उपयोग किसान अपने खेतों में कर रहे हैं। इससे खेतों की उर्वरा शक्ति कमजोर हो रही है एवं मिट्टी जहरीली होती जा रही है। वहीं इसका हमारे पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ रहा है। इसके पहले जैविक खेती के बारे में सिर्फ किसानों को जोड़ा जाता था एवं उन्हें ही प्रशिक्षण आदि दिए जाते थे। जिससे कि वे रासायनिक खाद का कम उपयोग कर सकें एवं जैविक खेती की ओर ज्यादा लगाव कर सकें।
किसानों को प्रशिक्षण के माध्यम से जैविक खेती एवं खाद के बारे में जानकारी दी जाती है। घरेलू खाद को जैविक तरीके से बना कर खेतों में डालकर अधिक उपजाऊ करने की नई-नई तरकीब बनाई जा रही है वही अब सरकार ने मध्य प्रदेश के जबलपुर और ग्वालियर कृषि विश्वविद्यालय में जैविक और प्राकृतिक खेती पर आधारित एक नया पाठ्यक्रम चालू किया जाएगा। वही सरकार की ओर से दोनों विश्वविद्यालयों के कुलपतियों से इस पाठ्यक्रम पर विस्तृत चर्चा हो गई है वहीं सरकार का कहना है कि विद्यार्थियों को जैविक खेती की पढ़ाई कराने वाला मध्यप्रदेश देश का पहले राज्य की श्रेणी में होगा। यह बात प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने कही।
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चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि गुजरात में जैविक खेती करने वाले 50 हजार किसानों को मध्य प्रदेश के किसानों से जोड़ा जाएगा। वही उन्होंने कहा कि प्रदेश में लगभग 16 लाख हेक्टेयर भूमि पर जैविक खेती की जा रही है। वही उनका कहना था कि जैविक खेती को करने वाले किसानों को मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से सम्मानित किया जाएगा सरकार के इस फैसले से विद्यार्थियों में एवं किसानों में खुशी का माहौल दिखाई दे रहा है।

शोध के साथ-साथ उसका आर्थिक पहलू को भी समझना जरूरी-
जवाहर नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्र एवं प्रक्षेप प्रबंध विभाग में कृषि आर्थिक अनुसंधान केंद्र की वार्षिक समीक्षा बैठक की गई। इस बैठक में मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय कृषि मंत्रालय की आर्थिक एवं सांख्यिकी सलाहकार डॉ प्रमोदिता सतीश मौजूद रहीं। इस बैठक में कृषि से जुड़े आर्थिक विषयों को विस्तारपूर्वक समझा गया एवं अनुसंधान कार्यों में होने वाली भावी योजनाओं की भी समीक्षा की गई।
संवाद के दौरान विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए सभी अनुभवियो ने अपने अपने विचार रखे। इस अवसर पर कुलपति प्रोफेसर विसेन ने कहां की वर्तमान में चल रहे कृषि शोध कार्य के बेहतर परिणाम सामने आए हैं इन परिणाम से न सिर्फ कृषि की लागत कम की जा सकती है बल्कि कृषि और शोध कार्य में भी भविष्य की चुनौतियों का डटकर सामना किया जा सकता है। उन्होंने सभी लोगों से कहा कि कृषि पर शोध जरूरी है, लेकिन उसका आर्थिक पहलू को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इसे गहनता के साथ समझना जरूरी है।
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किसानों से राय पहली प्राथमिकता-
कृषि मंत्री ने कहा है कि भविष्य में कृषि से जुड़ा कोई भी कानून बनता है तो सबसे पहले उस में किसानों की राय ली जाएगी ,और इसके फायदे किसानों को बताए जाएंगे। ताकि किसानों को भविष्य में कोई कानून संबंधी परेशानी ना हो ।उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के हित में लगातार कार्य कर रही है और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो इसके लिए भी सरकार की ओर से लगातार किसान हित में प्रयास किए जा रहे हैं।
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